सोमवार, 1 जून 2015

...................टीस....................

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आज भारी वर्षा होने लगी हैं...
ट्राफिक में उलझने भी बढ़ने लगी हैं...
आज भी रोज की तरह घर लेट आया हूँ...
सारी देह सर से पैर तक कंपित हैं..
वर्षा में भीगने से कम,
मेरी श्रीमती जी से ज्यादा भयभीत हैं...|

जैसे ही मैंने घर में पाऊँ धरा,
जूते बाहर सरकाए..छाता बंद करा...
अंदर से एक दहाड़ सी आयी...
"आ गए...? आज क्या बहाना था...?
लोकल छूट गयी, या मित्र को मिलने जाना था... ?
आप के पास बहानों की तो कमी ना होगी...?
ये भी नहीं सोचा होगा इस अंधेरे में बीवी,
कैसे दो बच्चो का तांडव सह रही होगी...?"

मैंने कुछ ना कहने में भलाई मानी,
छोटे को चपत जड़ी; बड़े को चपत लगाने कदम बढ़ाए...
तभी नासिका ने आँखों को दिशा बताई...
कोई जनि पहचानी खुशबू आई...
सामने प्लेट में पकोड़े बड़े मस्त थे...
मैंने पकोड़ों की राह चुन ली...
तभी श्रीमती की और दो बाते सुन ली....

"आज बहार खाना खाया नहीं शायद...?
या आज तुम्हारा कोई "प्रोग्राम" नहीं था?
तुम्हारे बेकार मित्रो ने आज तुम्हे  नहीं पिलाई...?
या फिर तुम्हे ही पिने की याद नहीं आयी...?
आय्याशियो को ट्राफिक का नाम देते हो..
क्या मुझे पता नहीं तुम घर रोज देरी से क्यों आते हो??? "

मैंने कहा "देखो भागवान,ऐसे कोसो नहीं...
तुम्हारा पति कोई शराबी नहीं हैं...जो रोज पीकर आये...
अपनी दाल-रोटी भर आमदनी, रोज कबाब कोफ्तो में उडाये.."

तभी श्रीमती रूद्र हो गयी...
"अरे इतना होश होता तो,कुछ एहसास रखते...!
बेटी के ब्याह के लिए कोई अच्छा रिश्ता ढूंढ लेते...!
दिन भर ऑफिस में रहते हो,शाम में दोस्तों के साथ होते हो...
कोई फ़िक्र नहीं हैं बस दिखावा हैं,
पता हैं; तुम अज कल क्यों देर से आते हो...
बॉस के सेक्रेटरी की "कंपनी" में अज कल देरतक मजे उठाते हो...!"

अब तो बात चारित्र्य की थी सो मैं भी बोल पड़ा...
"देखो यू शक करना ठीक नहीं.. मैं कोई मजे नहीं उठाता..
रोज ऑफिस जाने के लिए अब तो ऑटो भी नहीं लेता हूँ...
इसी बहाने २५ रुपये रोज बचा लेता हूँ..,
दिन भर ऑफिस में काम ही काम होता हैं...
पता तक  चलता नहीं...कब दिन ढलता हैं; कब दिया जलता हैं...
सभी दोस्त मुझसे इसी लिए कफा हैं की मैं उनसे अब ज्यादा मिलता नहीं...
मिलु भी तो दो घडी से ज्यादा बेहेलता नहीं...
मैंने पार्टियों में जाना पिछले कई महीनो से बंद कर रखा हैं...
वो ही पैसा अब अल्पबचत में भर आता हूँ...
मैं अज कल एक एक पैसा खर्च करते कतराता हूँ...
जनता हूँ, बच्चो को पढ़ना हैं, बड़ी बेटी का ब्याह भी रचाना हैं...
मुझे हर जिम्मेदारी का एहसास हैं...
इसी लिए हर वक्त पैसा जुटाता हूँ...
जिस देरी को तुम मेरी अय्याशी का नाम देती हो..
उसी ओवर टाइम में, मैं एक्स्ट्रा इनकम कमाता हूँ..."

ये सुन कर श्रीमती जी चुप सी हो गयी...
नजरों को झुकाए बस मौन सी कही खो गयी...
मैंने भी उन्हें पास कर लिया...दो घडी सही..
फिर गुजरा वक्त याद कर लिया ...
रोज की आपा धापी में मनो वो मुझसे कितनी दूर हो गयी थी...
उसके गर्म आंसू, मेरी फटी कमीज़ में सामने लगे..
दो ह्रदय एक-दूजे को मौन ही समझाने लगे,
बाहर वर्षा और भीतर हमरी सौवेदनाये चरम पहुँच गयी थी....
बाहर वर्षा और भीतर हमरी सौवेदनाये चरम पहुँच गयी थी....
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..............................***प्रारब्ध***.............................. 

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

मैं रावन...क्या सच में मैं बुरा था...?

मैं रावन...क्या सच में मैं बुरा था...?
क्या तुम भी सोचते हो के मैं अत्याचारी था, दुराचारी था ..?

मैं तो बस पत्थर भर था... प्रभु के धर्म सेतु का ...
मैं तो बस निमित्त मात्र था... अधर्म के निखंदन का ...
...
मैंने न सोचा, कौन क्या कहेगा ...
कौन मुझे नराधम कहेगा...राक्षस या...व्यभिचारी कहेगा...
मैंने न सोचा , कभी दशहरे पर मेरा भरे चौक दहन भी होगा ...

मैं तो बस अपना करम किये जा रहा था...
अपने प्रभु प्रीत खातिर खुदका बलिदान किये जा रहा था....

मैंने सीता हरण किया ये आप का दृष्टिकोण हैं..
मैंने कभी कोई हरण किया ही नहीं....
मैं तो बस अपनी बेटी को मायके लेकर आया था...
बेटी को मायके लाना कोए हरण नहीं...

मुझको जो दशानन कहते हैं आज के युग के ये वासी....
अज का युग तो मेरे युग से भी ज्यादा अन्धकार में डूबा हैं...
लाखो रावन है पनपे यहाँ...अब तो मुझको भी डर सा लगता हैं...

मैं खुद आज प्रभु से एक और गुहार लगता हु...
आप के आने की खातिर फिर एक बार जन्म लेना चाहता हु...
मंजूर हैं मुझको मेरा दहन दोबारा...लेकिन धरती पर फिर से सतयुग आये...
मुझे मिटने की मंशा से आप को फिर धरती पर बुलाता हु...

मैं रावन..क्या सच में मैं बुरा था...??

..............................***प्रारब्ध***..........................

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

हर कोई आज कल यहाँ धर्म धर्म करता रहता है...
बापू तेरा भारत वर्ष अब वर्ष भर जलता रहता है ,

नेता सरे मतलब साधू हो गये...तेरे तत्वों को त्याग कर...सत्ता भोगी हो गए...
अब तो हर नेता बस कुर्सी पर ललचाता  है...बापू तेरा भारत वर्ष अब वर्ष भर जलता रहता है ,

अज तुम्हारा "हे राम" नाम...धर्म की बेडी में लिपटा है...
हिन्दू  अपने राम की तो मुस्लिम अल्लाह की नुमाइश करता  है...
पैगम्बर-के साथ में बैठा राम अपनी ही दुर्दशा देखता रोता रहता है...
बापू तेरा भारत वर्ष अब वर्ष भर जलता रहता है ,

भ्रष्ट कथन और भ्रष्ट चलन आज की निति यही  है ....
धनबल्वान का मिथ्या वचन भी सही..और सत्य कथनीय दुर्बल पापी ठहराया जाता है...
सत्य वचन के कथन पर पक्षों द्वारा संग्राम उठाया जाता है...
बापू तेरा भारत वर्ष अब वर्ष भर जलता रहता है ,......

नमन तुझे...वंदन है तुझे....तू ही सत्य का ज्ञाता है...
शत शत बार ....चरणों पर तेरे ये आज का पापी प्रारब्ध शीश नमता रहता है...
बापू तेरा भारत वर्ष अब वर्ष भर जलता रहता है ,
..........................***प्रारब्ध***...............................

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

त्रिवार मुजरा....||

तो थोर कुलाचा तेज होता...
महाराष्ट्राच्या मुकुटाचा शिरपेच होता...
रक्तातच त्याच्या खेच होता....
त्याच छावा हि अग्निपंख सम नजरखेच होता...

.क्षत्रिय कुलावसंत होती हि सारी जात...
सर्वांच्या माथी हिदवी स्वराज्याचा लेप होता...
शिवाचा रुद्र होते दोगेह बाप लेक ...
छत्रपती मानून त्यापुढती नमतो शीर...आज ही...हर एक.... ....
.
रयतेतील हर एक जातीने नाही नीतीने मराठा झाला होता...
कान्नोज चा बामन छाव्याच मरण सोबती झाला होता...
कारण एकच....हर एक जातीने नाही नितेने मराठा झाला होता...
..
जीवाला जीव देणारी आपली हि जात मराठ्याची...
अख्खा महाराष्ट्र तारिला ज्यांनी ती जात मराठ्याची ...
आजही तळपती आहे ही जात मराठ्याची...
भोसले कुलावासंताना भाजते आज ही..ही जात मराठ्याची...

||भोसले कुळातील सर्व काबिल्याला...माझा त्रिवार मुजरा....||
जगदंब....
जगदंब....
जगदंब....
जय भवानी....
.................***प्रारब्ध***......................

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

ramcharit....

इक बार एक कंप्यूटर लाया गया...
मंत्री जी की टेबल पर रखवाया गया...
मंत्री ने उद्घाटन की काटी फिती...
और चेलो ने तालियो की बाजी जिती...

मात्र जी ने बटन दबाया...
और गर्व से पूछा...
"बता श्री राम कौन थे...?"
.
कप्यूटर कहने लगा...
"राम...! राम लूच्चा था लफंगा था...
लोगो की बीवियो को उठाया करता था,,,पापी था दुरात्मा था.."

मंत्री जी ने सुनते ही..ज़ोर से दहाड़ लगाई...बोले..
"अरे मूर्ख ये क्या कह रहा है...राम की इस पावन भूमी पर ही राम का नाम बदनाम कर रहा है...???
मैने राम चरित पूछा और तू चरित्र रावण का बता रहा है???"

कमपूटर भी दहाड़ कर बोला...
"अरे बेवकूफ़ इंसान..खादी मे छुपे भ्रष्टाचारी शैतान...
आकल ना होश...कन पकड़े खरगोश..
ये क्या फ़िज़ूल के इल्ज़ाम लगता है...
ग़लती तू करता है और इल्ज़ाम अपक्ष पर लागत है...
मैं नही राम का नाम तो तू खुद ही बदनाम करता है...
बटन रावण का दबाता है...और चरित्र प्रभु श्री राम का पूछता है....???"
-------------स्व. पं. गोवर्धनलालजी अवस्थी(साहीत्यरत्न,औरंगाबाद(महा.)-----

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

-----मौन रहकर क्षितिजो को ताकना-----

मौन रहकर क्षितिजो को ताकना ;
आदत सी हो जाती है.....
जब अपनी ही पहचान अपने ;
आँखो मे खो जाती है.....

क्षण-क्षण बढ़ती दुनिया मे जब ;
कदम पिछड़ते जाते है...
क्षण-क्षण रिश्तो के बंधन से ;
व्यक्ति छूटते जाते है...
भावनाओ को हर पल सूली पर चढ़वया जाता है ;
दुनिया चलती लाशो का बाज़ार भर रह जाती है.....

तब.......
मौन रहकर क्षितिजो को ताकना ;
आदत सी हो जाती है.....!!

अपने घर की नीव के पत्थर ;
जब पकड़ छोड़ने लगते है....
तब झुंझला कर युवा दीवारे ;
नीव नयी रख लेती है.....
उमर के सांझ की धूप तब बड़ी कठिन हो जाती है ;
फिर खुद को समझकर बूढ़ी नीव अंतर मान ढहा जाती है...

तब........
मौन रहकर क्षितिजो को ताकना ;
आदत सी हो जाती है.....
           
            -----***प्रारब्ध***-----